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शहर गाजीपुर में लगभग 400 वर्ष पुराना है सन्यासमार्गी सम्प्रदाय का प्राचीन पोस्ता घाट मठ

गाजीपुर शहर में लगभग 400 वर्ष पुराना है सन्यासमार्गी सम्प्रदाय का प्राचीन पोस्ता घाट मठ

गाज़ीपुर। शहर के पूर्वी क्षेत्र मे मठ काशीदास महाराज जी का है. यहाँ मैं कई बार आया गया हूं. मठ के प्रवेश द्वार के माथे पर “अतिप्राचीन ऐतिहासिक मठ स्थापित विक्रम संबत 1761, मुग़लपुरा गाज़ीपुर” अलंकृत है. आप जैसे ही मठ के द्वार से अंदर कदम रखेंगे, उत्तरी ओर कमरानुमा दालान है, जहाँ एक गोलकुण्ड है. उसमे नंदी के अतिरिक्त अनेक शिवपिंड तथा छोटी छोटी मूर्तियां हैं. श्रद्धालू लोग पोख्ता घाट (पोस्ता लेकिन सरकारी अभिलेख मे पुश्ता घाट है ) स्थित गंगा नदी से नहाकर प्रतिदिन इसपर गंगा जल तथा पुष्प अर्पित करते हैं. उसी के अंदर एक अन्य द्वार हैं जिसमे से होकर मठ के भीतर लोग आते जाते हैं. वहां एक दालान है जिसके दक्षिणी ओर छोटा सा कमरा है. कभी मठ की देखभाल और चौकीदारी के लिए द्वारपाल रहता रहा होगा. सीढ़ियों से उतरकर जब हम मठ के मुख्य आंगन मे प्रवेश करते हैं, सामने ही एक शिव मंदिर है जिसमे भव्य कुछ मूर्तियां है जिसपर प्रतिदिन श्रद्धालू आकर गंगा जल तथा पुष्प अर्पित कर पूजा पाठ करते हैं। मठ के आँगन से लगी तीन दिशाओं मे स्थित पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण तरफ चौड़ी चौड़ी तीन दालाने हैं. उनकी छतें मोटी मोटी शीशम क़ी अलकतरा लगी लकड़ियों क़ी बल्लियो पर टिकी है तथा छत पत्थर क़ी सिल्लीयों तथा लाहौरी इंटों पर है तथा ऊपरी छत तथा मठ की दीवारों पर पलास्टर चुने एवं सुर्खियों के गारे से हैं. इस मठ क़ी हर दालान मे तीन तीन कमरे हैं. अनाज भंडार के लिए एक बड़े कमरे के अलावा मुझे लगता है कि अन्य कमरे मठ के महंत तथा श्रद्धांलुओं के ठहरने के प्रयोग मे आते रहे होंगे.यहाँ धार्मिक आयाजनों मे प्रयोग होने वाली तत्कालीन समय क़ी कई वस्तुओं को रखे हुए मैंने देखा, जैसे अनाज भंडार हेतु बड़े बड़े हौदे,पीपे, ओखली, सिल बट्टे, चौकीयां है. इसके आंगन मे नीम, कनेर तथा गुड़हल के पेड़ भी लगे है। मठ के दक्षिण तरफ दालान के मध्य भाग मे बाबा काशीदास क़ी समाधी है जो इक अतिसुन्दर चौकठे पत्थरो से निर्मित स्थल के अंदर स्थित है. इस समाधी स्थल को तथा मठ को विक्रम संबत 1761 अर्थात 1700 ईस्वी मे तत्कालीन गाज़ीपुर के प्रशासक नवाब अकबर अली ने बनवाया था. मठ के पास एक अभिलेख ऐसा भी है जिसमे लिखा है कि – नवाब अकबर अली परिवार सहित प्रतिदिन आशीर्वाद लेने हेतु आता था क्यूंकि बाबा काशीदास महाराज की निगाह करम के कारण उसको पुत्र नसीब हुआ था. मुख्य समाधी के शीर्ष पत्थर पर काशीदास महाराज श्री का निर्वाण वर्ष नवाब ने अलंकृत कराया था. यह आज भी दर्शनीय है। यहाँ मेरी मुलाक़ात 1991 मे मठ के महंत श्री श्री 1008 कृष्णानंद जी से हुई थीं जो बेहद हंसमुख और अन्तर्यामी सन्यासी यति महाराज थे. उनकी बोलचाल वाली भाषा मे पंजाबी पुट था. मालूम हुआ कि आप 60 वर्ष पूर्व मठ की सेवा के लिए जालंधर के पठानकोट मंडी गोविंदगढ़ से नियुक्त हुए थे. वहां इस मठ का मुख्य संगत कार्यालय है जहाँ से हर स्थान पर स्थित उदासी ( संन्यासमार्गी ) सहिजधारी शाखाओं मे यति भेजे जाते हैं. इसके प्रवर्तक गुरुनानक के पुत्र श्रीचंद्र थे. उदासी जोकि संस्कृत के उदास शब्द से आया है जिसका अर्थ है — परित्याग करना या वैराग्य लेना. इस पंथ के लोग बाल कटवाते हैं और दाढ़ी बनाने की इजाज़त है. लाल रंग के कपडे पहनते हैं तथा महंत के नाम के आगे दास या फिर आनंद शब्द जुड़े होते हैं. यह लोग जीवन भर अविवाहित होते हैं। इस मठ को दान मे दी गई भूमि के अभिलेखों से सम्बंधित अनेक बादशाहों तथा नाबों के कागजात को श्री श्री 1008 कृष्णानंद जी ने मुझे दिखाया था. उनके एक शाही फरमान मे है कि- उन्हें इस दरबार के शिष्य महाराज काशीदास को शासन द्वारा तीन सौ एकड़ लगन मुक्त क़ृषि भूमि क़ासिमबाद, मरदह, जांगीपुर, बिरनो, झूठारिपुर बक्सर आदि स्थानों पर मिली थीं. एक अन्य कागज मे है कि इस मठ काशीदास के सालाना धार्मिक अनुष्ठाणों के कार्य हेतु इग्यारह बिगहा ज़मीन मय मठ के दान मे नवाब अकबर अली ने दी थीं. कागज मे यह भी है कि गोसाई काशीदास श्री चन्द्रमुनी के उदासीन संप्रदाय से शिक्षा लेकर अपने अनुयायी नारायण मिश्र के साथ गंगा तट पर आकर एक कुटिया बनाई तदपश्चात् नवाब अकबर अली ने वहां उदासीन नानकशाही पंथ मठ की नीव रखी. मठ के हरिदास, भगवानदास, गोविंददास, कृष्णनंददास तथा मौजूदा महंत वासुदेवानंद दास जी हैं. इस मठ से सम्बंधित अधिकतर कागज़त लखनऊ के स्टेट आर्काइव मे हैं जैसा कि मुझे कृष्णनंद दास महाराज ने मुझे बताया. एक बात जो मुख्य है कि शहर मे इस मठ के अलावा भी शहर के शिशुमंदिर रायगंज मे स्थित मठ गुरूमुखदास है जिसक़ी मुहल्ला संगत कला मे 1720 ईस्वी के आसपास नीव पड़ी थीं जिसकी एक शाख रौजा स्थित गुरुबाग़ मठ है, जो लखनऊ के मुख्यालय संगत पुरानी सब्ज़ी मंडी चौक तथा पुरानी बांसमंडी रुपपुर खदरा के अंतर्गत है. एक अन्य मठ शहर के उर्दू बाजार नवाबगंज मे उदासीन नानक्शाही है जिसके महंत संतोषदास तथा भगवानदास आदि हुए है. इनके अतरिक्त मोहल्ला मियांपुरा मे बादशाह जहांगीर के शासन काल मे निर्मित उदासीन नानक शाही मठ है. देखा जाये तो इन सभी मठों क़ी मौजूदा हालत बेहद जर्जर तथा नाजुक हैं, जिसकी देखभाल क़ी ज़रूरत है।

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Jitendra Singh Kushwaha

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